मोहिनी एकादशी 2025: बस कर लो ये 5 उपाय, लक्ष्मी-नारायण खुद घर आ जाएंगे!

एकादशी के मौके पर जब वातावरण में अजीब सी शांति छा जाती है और हृदय में एक अलग ही उल्लास जाग उठता है, तभी आत्मा की यात्रा और भी रंगीन हो जाती है। यह दिन न केवल आस्था को मजबूत बनाता है, बल्कि जीवन में नई उमंग, ऊर्जा और सकारात्मक बदलाव भी लेकर आता है। ऐसी ही एक विशेष तिथि है जब श्रीहरि ने मोहिनी स्वरूप धारण कर असत्य पर धर्म का प्रभावशाली विजय दिखाया था।

पावन तिथि का ऐतिहासिक महत्व

पुराणों में वर्णित है कि एकादशी के दिन ही विष्णु भगवान ने मोहिनी अवतार धारण करके असुरों और देवताओं के बीच हुए विवाद को शांत किया था। अमृत वितरण की इस कथा ने अधर्म के विरुद्ध धर्म की अजेय शक्ति का प्रतीक बना दिया। इस रूप की स्मृति में आज भी श्रद्धालु व्रत रखकर आध्यात्मिक शुद्धि और भौतिक समृद्धि दोनों की कामना करते हैं।

व्रत का सही समय और अनुशासन

इस वर्ष व्रत का आरंभ अगले दिन तारे निकलने के बाद 10:19 बजे से होता है और यह कल दोपहर 12:29 बजे तक चलेगा। श्रद्धालु सावधानीपूर्वक इस अवधि का पालन करें तथा परान के लिए प्रातः 5:35 से 8:17 बजे के बीच भोजन ग्रहण करें। समय की एकलव्यता का ख्याल रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी के आधार पर तिथि का शुद्ध आयोजन संभव होता है।

शरीर की शुद्धि के लिए स्नान विधि

उगे हुए सूरज की प्रथम किरणों के साथ स्नान की परंपरा अत्यंत लाभदायक मानी जाती है। किसी स्वच्छ जलाशय—जैसे नदी या तालाब—के तट पर जाकर पीला वस्त्र धारण करें। प्राकृतिक मिट्टी या तिलक चंदन-रुधिर से शरीर पर तिलक करते हुए यह अनुभव करें कि पूरे व्यक्तित्व में उज्जवलता और ताजगी समा रही है। सरल से इस कर्म से मन और शरीर दोनों ही उत्तम ऊर्जा से भर उठते हैं।

मनोकामना की पूर्ति के लिए मंत्र एवं स्तोत्र

व्रत के दौरान 108 बार ‘ॐ नमो नारायणाय’ मन्त्र का जप करने से मन की गहराइयों में शांति और आत्मविश्वास जागते हैं। इसके बाद गायत्री या विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करना प्रभाव को और भी प्रबल बनाता है। कथा कहती है कि इस ध्यान से धन, स्वास्थ्य और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यदि संभव हो तो मंत्र जप के बाद तुलसी के पौधे को जल अर्पित करें, इससे पुण्य की वृद्धि होती है।

दान और प्रसाद वितरण का महत्व

दान में गौघृत देना अत्यंत शुभ लाभ देता है। गाय-मूत्र से निर्मित घृत ग्रहण या दान से वास्तु दोष दूर होते हैं और सुख-समृद्धि का संचार होता है। हो सके तो होमफल, अक्षत या दलिया का प्रसाद तैयार करके जरूरतमंदों में बांटें। जीव-दान के साथ-साथ अन्य सामग्रियों का दान भी उत्तम फलदायी होता है।

देवी-देवता आराधना की मर्यादा

पूजन स्थल पर हल्दी-सिन्दूर अर्पित करके स्वच्छ आसन तैयार करें। इसके पश्चात लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति या चित्र पर ध्यान लगा कर धूप-दीप प्रज्ज्वलित करें। उपासना के अंत में नारियल मूलक दान करने से गृह-स्थल में सौहार्द्र बढ़ता है और ऐश्वर्य का वास होता है।

निष्कर्ष

जिस प्रकार वास्तविकता में पवित्र कर्मों का अपूर्व महत्व है, उसी प्रकार छोटी-छोटी विधियों से प्राप्त होने वाला आशीर्वाद भी अनमोल होता है। उपरोक्त सरल उपायों को अपनाकर न केवल आत्मिक शांति की अनुभूति होगी, बल्कि जीवन में स्थायी समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त होगा। इस आत्मिक अनुष्ठान को अपनाएं और अनुभूत करें कि कैसे सत्कर्मों की धारा आपके जीवन को कुल्लारित कर देती है।

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