हनुमान जी वानर राज केसरी और अंजना के पुत्र थे (वाल्मीकि रामायण एवं पुराणों में वर्णित)। धार्मिक कथाओं के अनुसार उनका जन्म त्रेता युग के अन्तिम चरण में हुआ था। वाल्मीकि रामायण में जन्म तिथि का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, परंतु ग्रंथों में माता अंजना की तपस्या, सूर्य को आम समझकर खाने की बाललीला आदि प्रसंग मिलते हैं। कई पुराणों में उनकी उत्पत्ति की कथाएँ हैं – जैसे वायु पुराण और वराह पुराण में वर्णित है कि वायुदेव की कृपा से अंजना को फल प्राप्त हुआ था। शिव और वायु देव की तपस्या से जन्मे हनुमान जी को पुराणों में शिव के रुद्रावतार भी माना गया है।
श्रुति/पुराण में उल्लेख:
- स्कंद पुराण (महेश्वर खंड, केदार महात्म्य): चैत्र मास की पूर्णिमा में चित्रा नक्षत्र में अवतार हुआ।
- वायु पुराण/अगस्त्य संहिता: कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (स्वाति नक्षत्र, मेष लग्न) को जन्म हुआ।
- अन्य ग्रंथ: “कल्पभेद” की मान्यता के अनुसार कुछ ग्रंथों में चैत्र माह, कुछ में कार्तिक माह बताया गया है। उदाहरणतः अगस्त्य संहिता और व्रत रत्नाकर में कार्तिक जन्म, जबकि स्कंद पुराण में चैत्र वर्णित है। इन भिन्नताओं के कारण ही साल में दो बार जयंती मान्यता में आई।
हनुमान जयंती पर मंदिरों में श्रद्धालु दर्शन हेतु कतार में खड़े होते हैं। परंपरा अनुसार सुबह के समय भक्त विशेष पूजापाठ करते हैं।
दो जयंती की परंपराएँ
हनुमान जयंती उत्तर भारत में चैत्र मास की पूर्णिमा (मार्च–अप्रैल) को मनाई जाती है। वहीं दक्षिण भारत में इसे अधिकतर मार्गशीर्ष/मार्गझा (नवंबर–दिसंबर) माह में या कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह विभेद ग्रंथों में वर्णित काल गणना के अंतर और परंपरागत विश्वासों से उपजा है। कुछ विद्वान इसे “कल्पभेद” का परिणाम मानते हैं, जहाँ एक ही घटना के विविध चक्रों में अलग तिथि बताई गई।
उत्तर और दक्षिण भारत में तिथियों का अंतर
नीचे दी गई तालिका में विभिन्न क्षेत्र/परंपराओं के अनुसार जन्म-तिथियों और उनके कारणों का सारांश प्रस्तुत है:
क्षेत्र / परंपरा | तिथि (हिन्दू मास) | विवरण / कारण |
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उत्तर भारत | चैत्र मास की पूर्णिमा (पूर्णिमा दिन) | स्कंद पुराण आदि में उल्लिखित जन्म तिथि; वसंत ऋतु की पूर्णिमा। |
तेलंगाना / आंध्र | वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी (चैत्र पूर्णिमा से 41 दिन बाद) | चैत्र पूर्णिमा से 41 दिवसीय दीक्षा उपवास का समापन; राम-संबंधी लोक परंपरा। |
कर्नाटक | मार्गशीर्ष मास शुक्ल त्रयोदशी | स्थानीय मान्यता या पुराणों के अनुसार जन्मतिथि। |
तमिलनाडु / केरल | मार्गशीर्ष (धनु) मास अमावस्या | दक्षिण भारतीय पंचांग में मार्गशीर्ष माह की अमावस्या। |
ओड़िशा | ओड़िया नववर्ष (पाना संक्रांति, अप्रैल) | प्रांतीय नववर्ष उत्सव के साथ मेल। |
ऊपर सारणी से स्पष्ट है कि क्षेत्रानुसार जयंती के दिन भिन्न हैं। इनका कारण है विभिन्न श्रुति/पुराणों और पारम्परिक पंचांगों में वर्णित तिथियों का अंतर। उत्तर में चैत्र पूर्णिमा को प्रमुखता से चुना गया क्योंकि पौराणिक कथा में इसी दिन हनुमानजी पर इंद्र का वज्रपात हुआ था। दक्षिण में मार्गशीर्ष कार्तिक का समय अथवा धनु मास को उत्तम माना गया है।
विभिन्न मान्यताएँ एवं परंपराएँ
हनुमान जी की महिमा को लेकर अनेक विश्वास हैं। उन्हें वायु-पुत्र कहा जाता है क्योंकि उनकी माता अंजना ने पवनदेव की तपस्या से संतान प्राप्ति की थी। इसी कारण वे बजरंगबली कहलाए। अनेक ग्रंथों में उन्हें भगवान शिव के रुद्रावतार बताया गया है। हनुमान चालीसा और अन्य स्तोत्रों में भी उनका शिवावतार रूप कहा गया है। भक्त मानते हैं कि हनुमान जी अमर (चिरंजीवी) हैं तथा कलियुग में भी जग रक्षा के लिए सदैव विश्व में विराजमान रहेंगे। विभिन्न परंपराएँ यह मानती हैं कि हनुमानजी विभिन्न कल्पों में जन्म लेते चले आएँगे। कल्प भेद के अनुसार एक ही घटना के अलग-अलग कालखंडों में अलग पूजा-तिथियाँ प्रचलित हो गई हैं, जिस वजह से दोहरी जयंती मनाई जाती है
हनुमान जयंती पर सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ एवं भजन-अर्चना होती है। कई स्थानों पर ठोस शिव-पार्वती या हनुमान की चित्रावली के समक्ष आरती की जाती है, और श्री हनुमान चालीसा एवं सुंदरकांड का पाठ किया जाता है । मंदिरों को रंगोली और फूलों से सजाया जाता है, और श्रद्धालु ‘ॐ हनुमते नमः’ जपकर माँगों की पूर्ति की कामना करते हैं।
आधुनिक काल में हनुमान जयंती का उत्सव आज भी हनुमान जयंती पर भोर-उदयी के समय से भक्त मंदिरों में एकत्रित होकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। भक्त झंडा यात्रा, स्वामी रामभक्त अनुष्ठान या हनुमान हवेली में 108 बार चालीसा का पाठ करते हैं। पूजा में हनुमान जी को सिंदूर-अक्षत, केसर, फूल, फल एवं प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई समुदायों में पौराणिक कथा का नाटक या रामायण का अखंड पाठ आयोजित किया जाता है।
आधुनिक रूप – सामूहिक आयोजन और डिजिटल साधना
वर्तमान में सार्वजनिक जलसे, रामलीला मंचन और सामूहिक कीर्तन का आयोजन आम है। समाजसेवक हनुमान प्रसाद दान भी करते हैं। दूरदर्शन, यूट्यूब व सोशल मीडिया पर भी भजन संध्या, प्रवचन व डिजिटल आराधना प्रसारित की जाती है। उदाहरणतः एक समाचार लेख में बताया गया कि इस दिन भक्तों ने हनुमान चालीसा का जप, भजन-कीर्तन और सुंदरकांड पाठ से दिनचर्या आरंभ की और समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलाई।
आधुनिक काल में श्रद्धालु हनुमान जी की मूर्ति पर फूल और सिंदूर अर्पित करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं) – इस प्रकार आज भी श्रद्धा और भक्ति के भाव से हनुमान जयंती पर्व मनाया जाता है