शनिवार का दिन हिन्दू धर्म में शनि देव को समर्पित माना जाता है। शनि देव न्यायधर्म के प्रदाता हैं और कर्मों के अनुसार फल देते हैं। परंपरा है कि इस दिन उनकी विधिवत पूजा-अर्चना, मंत्रजप, व्रत और दान करने से शनि की कृपा मिलती है। निम्नलिखित धार्मिक एवं व्यवहारिक उपाय शनिवार को किए जाते हैं ताकि शनि देव प्रसन्न हों:
पूजा-विधि
- स्वच्छ नित्यावसन: शनिवार प्रातः जल्दी स्नान कर काले या गहरे रंग के शुद्ध वस्त्र धारण करें। साफ-सुथरा शरीर और वस्त्र पूजन में भक्त की श्रद्धा बढ़ाते हैं।
- दीपक और तेल अर्पित करना: शनिदेव की प्रतिमा या चित्र के सामने लोहे के दीपक में सरसों या तिल का तेल भरकर दीपक प्रज्वलित करें। यह माना जाता है कि सरसों के तेल का दीप अंधकार को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा लाता है तथा शनिदेव को प्रसन्न करता है। दीप जलाने से शनि के कष्ट दूर होते हैं।
- काले तिल–गुड़–भोग अर्पण: शनि देव को काले तिल, काले उबले चने, गुड़, काले कपड़े आदि चढ़ाएं। काले रंग का अर्पण और तिल–गुड़ की सामग्री शनिग्रह के अनुरूप होती है और श्रद्धा प्रदर्शित करती है। इन अर्पणों से शनिदेव की क्रोधप्रकृति शांत होती है।
- पीपल व्रक्ष पूजा: शनिवार सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाकर उसकी जड़ के नीचे दीपक जलाएं। पीपल को पवित्र माना जाता है और इस विधि से शनिदेव को प्रसन्नि मिलती है। (साथ ही पेड़ की परिक्रमा करना शुभ फलदायी माना जाता है।)
- शनि यंत्र पूजन: शनिवार को शनि यंत्र या शनि की तस्वीर स्थापित करके उसकी विशेष पूजा करें। यंत्र की स्थापना और पूजन से शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मंत्र-जाप
- मुख्य शनि मंत्र: शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए सर्वप्रथम ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का नियमित जाप करें। शनिवार को इस मंत्र का १०८ बार जप विशेष फलदायी होता है। मंत्रजप से चेतना शुद्ध होती है और शनिदेव की कृपा आती है।
- स्तोत्र-चालीसा पाठ: शनि देवी के मंत्रों के साथ शनिदेव की चालीसा एवं स्तोत्रों का पाठ करना भी शुभ माना जाता है। तेल अर्पण के बाद शनि चालीसा या शनि स्तोत्र पढ़ने से शनिप्रकोप कम होता है। महर्षि पराशर आदि द्वारा रचित शनि स्तोत्र या नवग्रह शनि स्तोत्र का पाठ लाभकारी होता है।
- हनुमान आराधना: शनि दोष निवारण हेतु हनुमानजी की अराधना विशेष महत्व रखती है। शनिवार को हनुमान चालीसा या हनुमान आरती का पाठ करने से शनिदेव शांत होते हैं। मान्यता है कि हनुमानजी शनि के क्रोध को कम करते हैं और भक्त की रक्षा करते हैं।
शनिवार व्रत
- व्रत का महत्व: शनि दोष (जैसे साढ़ेसाती या ढैया) निवारण के लिए शनिवार का व्रत रखना शुभ माना जाता है। शनि को प्रसन्न करने हेतु इस दिन अन्न-निराहार या फलाहार व्रत रखा जाता है, जिससे भक्त की इच्छाशक्ति और श्रद्धा प्रतीत होती है।
- व्रत विधि: प्रातःकाल स्नान-पूजन कर तिल और गुड़ का विठ्ठल भोजन ग्रहण करें तथा दिनभर बिना अनाहार व्रत रखें। शाम को सूर्यास्त से पूर्व ही तिल, गुड़ और तेलयुक्त पदार्थ (जैसे गुड़ रेवड़ी, तिल की लड्डू) से बनाया भोजन ग्रहण कर व्रत खोलें। भोजन में तिल और तेल अर्पित करना व्रत समर्पण की परंपरा है।
- कुत्ते को दान: व्रत के दौरान काले कुत्ते को उड़द की दाल, गुड़ या तला-भुना भोजन खिलाना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यदि कुत्ता उपलब्ध न हो, तो शनिवार को तेल मांगने वाले गरीब (डाकौट), निम्न वर्ग या वृद्ध कृष्ण वर्ण ब्राह्मण को उसी प्रकार भोजन–तेल आदि दान करें। यह शनि देव को अति प्रिय उपाय है, जिससे शनिदोष शांत होता है।
दान-पुण्य
काले वस्त्र और प्रसाद का दान: शनिवार को विशेषकर काले वस्त्र, काले तिल, सरसों का तेल, काले चने आदि की सामग्री गरीबों या मंदिर को दान करें। विद्या के अनुसार शनि देव काले रंग के प्रतीक से प्रसन्न होते हैं, इसलिए इनका दान शुभ माना जाता है। इन दानों से शनिदोष कम होता है और व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुधरती है।
गरीबों की सेवा: शनिवार को दान–दान और सेवा का विशेष महत्व है। जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या अन्य सामग्रियाँ अर्पित करें। ब्राह्मणों, वृद्धों, अनाथों की सहायता करें। बिना लोभ और भेदभाव के किया गया दान शनिदेव को अति प्रिय होता है और भक्त को पुण्य की प्राप्ति होती है। शनि के कार्यक्षेत्र में दान-पुण्य करने से भविष्य के संकट टलते हैं।
दान भावना: दान एवं पुण्यकार्य आत्मा की शुद्धि का कार्य है। शनिदेव कर्मदाते हैं, अतः निष्काम भाव से किया गया दान (पावन सामग्री का) शनि को बहुत भाता है। इसलिए शनिवार को दान करते समय स्नेहपूर्वक और श्रद्धापूर्वक अर्पण करें, इससे शनिदेव की विशेष कृपा होती है।
व्यवहारिक उपाय (आचरण व सेवा)
- सदाचरण और संयम: शनिदेव न्यायप्रिय है, इसलिए सत्यनिष्ठा, अहिंसा, क्षमा और संयम का पालन करें। शराब व मांसाहार त्यागकर शाकाहारी भोजन लें। आत्म संयम और अच्छे कर्म करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जातक के कष्ट घटते हैं। शनि कर्म के देवता हैं, अतः धर्मात्मा कर्म करने से उनके अनिष्ट से बचाव होता है।
- परोपकार और पूजा: शनिवार को गरीबों, अनाथों, वृद्धों आदि की सेवा करें। विशेषकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं या वृद्धाश्रम में समय बिताएं। इंद्रायुध दान (जैसे भोजन-दान, वस्त्र-दान) से श्राद्ध या विषाद (श्यवाचार) दूर होता है, जिससे शनिदेव की कृपा मिलती है।
- प्रकृति सेवा: शनि सौरमंडल से जुड़ा ग्रह है, इसलिए पीपल के वृक्ष की पूजा–परिक्रमा करें। पीपल को जल चढ़ाएं और उसका अभिषेक करें। इससे पृथ्वी-माता की सेवा होती है और शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
- कौवों और कुत्तों को भोजन: शनि देव के दूत माने जाने वाले कौवे, काले कुत्ते आदिके भूखे जीवनस्तरीय भोजन से त्रिप्त करें। कौवों को दाने देना विशेषकर शनिदेव को खुश करता है। भोजन देने का यह सरल उपाय संकटनिवारण का काम करता है।
- हनुमान पूजन: जैसा पहले बताया, शनिवार को हनुमानजी की पूजा और चालीसा के नियमित पाठ से शनिदेव शांत होते हैं। यह उपाय मानसिक बल देता है और शनि की दृष्टि को सौम्य बनाता है।
- काले वस्त्र एवं आभूषण: शनिवार को काले रंग के वस्त्र पहनना और लोहे के आभूषण (जैसे लोहे की अंगूठी) धारण करना शुभ माना जाता है। काले रंग और लोहे के शनि ग्रह के प्रतीक हैं। इनका उपासना में शामिल होना शनिदेव को प्रसन्न करता है।
इन सब उपायों को श्रद्धा से करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में अड़चनें दूर होती हैं। रविवार एवं अन्य दिनों में भी इन अनुशासित कृत्यों का पालन करने से दशा सुधरती है। शनि देव के ये परंपरागत उपाय (पूजा–प्रार्थना, व्रत–दान, सत्कर्म) हिंदू धर्मग्रंथों और ज्योतिषाचार्यों द्वारा सदैव प्रशंसित रहे हैं।
सन्दर्भ: शनि पूजा-विधि, व्रत-नियम एवं शनि दोष निवारण के उपाय हिन्दू धर्मग्रंथों और ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित हैं। इन उपायों का विवेचन पारम्परिक ग्रंथों के निर्देश और धर्माचार्यों की शिक्षाओं से मिलता-जुलता है।