मां ब्रह्मचारिणी: तप, संयम और साधना की देवी

चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी तप, संयम और साधना की देवी हैं, जिनकी आराधना से भक्तों को ज्ञान, ध्यान और वैराग्य की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और शांत है। वे दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडलु धारण करती हैं। उनका श्वेत वस्त्र और तेजस्वी मुखमंडल भक्तों को संयम और तपस्या की प्रेरणा देता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का शुभ अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:01 से 12:50 तक रहेगा।
इस दौरान भक्त मां की विधिवत पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

पूजा सामग्री

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  1. सफेद या पीले रंग का कपड़ा
  2. धूपबत्ती
  3. दीपक (घी या तेल का)
  4. सफेद या पीले रंग के फूल
  5. मिठाई (विशेषकर चीनी या खीर)
  6. अक्षत (चावल)
  7. रोली
  8. चंदन
  9. शुद्ध जल से भरा कलश
  10. नारियल

पूजा विधि

  • स्नान और स्वच्छता: प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को शुद्ध करें।
  • आसन स्थापना: पूजा के लिए आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • मां का आह्वान: मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें और संकल्प लें।
  • अभिषेक: मां की मूर्ति या चित्र को गंगाजल से स्नान कराएं।
  • श्रृंगार: मां को सफेद वस्त्र अर्पित करें और चंदन, रोली, अक्षत से तिलक करें।
  • पुष्प अर्पण: मां को सफेद फूल, विशेषकर गुड़हल या कमल के फूल, अर्पित करें।
  • भोग लगाना: मां को चीनी या खीर का भोग अर्पित करें, जो उनकी प्रिय मानी जाती है।
  • मंत्र जाप: मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें:
  1. “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः”
  2. “या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”
  • आरती: मां की आरती करें और घी का दीपक जलाकर कपूर के साथ आरती उतारें।
  • प्रसाद वितरण: अंत में, भोग को प्रसाद रूप में परिवारजनों और भक्तों में वितरित करें।

मां ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। उन्होंने हजारों वर्षों तक कठिन तप किया, जिसमें उन्होंने फल-फूल, बिल्व पत्र और अंततः निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की। उनकी इस कठोर साधना से प्रसन्न होकर देवताओं और ऋषियों ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करेंगी।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की प्रेरणा मिलती है। उनकी आराधना से व्यक्ति के जीवन में ज्ञान, ध्यान और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है, जिससे सभी कष्टों का निवारण होता है और सुख-समृद्धि का आग

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