इस ब्लॉग में हम जून 2025 में आने वाली निर्जला एकादशी की संपूर्ण जानकारी क्रमवार और बुलेट पॉइंट्स के माध्यम से प्रस्तुत करेंगे। जानकारी वही रखी गई है जो पहले दी गई थी, और ब्लॉग को 600 शब्दों से अधिक विस्तारित रखने का प्रयास किया गया है।
निर्जला एकादशी की तिथि एवं योग
निर्जला एकादशी इस वर्ष शुक्रवार, 6 जून 2025 को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि में मनाई जा रही है। इस दिन दो प्रमुख शुभ योग बन रहे हैं:
- भद्रावास योग: यह योग भद्रा पाताल लोक में रहता है और सर्वत्र शुभफलदायी माना जाता है।
- वरीयान योग: यह विशेष योग सुबह 10:14 बजे से आरंभ होता है और पूरे दिन की कार्य-सिद्धि का कारक होता है।
इन योगों के संयोग से इस निर्जला एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि व्रतियों को मनोवांछित फल की प्राप्ति में विशेष सहायता मिलती है।
निर्जला एकादशी का महत्व एवं लाभ
निर्जला एकादशी की महिमा अतुलनीय है। इस व्रत को करने से प्राप्त होने वाले मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
- एक व्रत में 24 एकादशियों के बराबर पुण्य की प्राप्ति
- मोक्षदायक फल, जिससे मृत्यु के पश्चात वैकुंठ धाम की प्राप्ति संभव
- समस्त पापों का नाश, चूँकि दिनभर अन्न और जल का त्याग कर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है
निर्जला एकादशी कथा
निर्जला एकादशी की कथा महाभारत से जुड़ी है। भीमसेन ने व्यास जी से ऐसा कोई विशेष व्रत पूछने का निवेदन किया, जिससे एक ही बार करने पर बाकी सभी एकादशियों के समान फल मिल सके। तब व्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत बताया, जिसमें जल ग्रहण तक का त्याग करना अनिवार्य है।
- भीमसेन ने इस व्रत का पालन कठोरता से किया
- अतः इस व्रत को “भीमसेनी एकादशी” के नाम से भी जाना जाता है
इस कथा से स्पष्ट होता है कि निर्जला एकादशी में संयम और दृढ़ता की विशेष भूमिका होती है।
पूजा विधि
निर्जला एकादशी के दिन निम्नलिखित पूजन-पद्धति अपनाई जाती है:
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और पीले वस्त्र धारण करें
- भगवान विष्णु की स्थापना करके पीले पुष्प एवं चंदन अर्पित करें
- दिनभर अन्न और जल का पूर्णतः त्याग रखें
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप लगातार करें
- रात्रि को दीपदान और आरती कर व्रत की पूर्णता सुनिश्चित करें
अगले द्वादशी तिथि के आरंभ होते ही ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें।
दान का महत्व
द्वादशी के दिन किए जाने वाले दान से भी विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। निम्नलिखित वस्तुओं का दान अनुष्ठानतः फलदायी माना जाता है:
- जल से भरा घड़ा या कलश
- छाता
- वस्त्र एवं जूते
- चीनी या अन्य मीठे पदार्थ
- ठंडक प्रदान करने वाली कोई वस्तु (जैसे पंखा, शरबती सामग्री आदि)
दान करने से गर्मी से पीड़ित लोगों को राहत मिलती है और दाता के घर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु
निर्जला एकादशी की सफलता व्रती की निष्ठा और नियमपालन पर निर्भर करती है। निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें:
- आरंभ से अंत तक जल का पूर्ण त्याग बनाए रखें
- व्रत कथा एवं भगवान विष्णु की लीलाओं का स्मरण करते रहें
- अत्यधिक शारीरिक श्रम से बचें, क्योंकि निर्जला व्रत में ऊर्जा का संकुचन होता है
- मन को शुद्ध रखने के लिए शांत वातावरण चुनें और परमात्मा में विश्वास बनाए रखें
निष्कर्ष
6 जून 2025 को आने वाली निर्जला एकादशी अपने साथ असीम पुण्य और मोक्षदायक फल लेकर आती है। भद्रावास और वरीयान योगों के संयोग से यह दिन और भी अधिक फलदायी बन जाता है। कठोर निर्जला व्रत में संयम, पूजा विधि का सही पालन और द्वादशी में दान का महत्व सर्वोपरि है। इस व्रत को निष्ठा के साथ करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी।
उम्मीद है इस ब्लॉग से निर्जला एकादशी के सभी पक्षों की स्पष्ट जानकारी मिली होगी। आप भी इस दिन का पूर्ण लाभ उठाएँ और भगवान विष्णु की अनुकंपा से जीवन को आनंदमय बनाएं।