उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तुंगनाथ मंदिर लगभग 3,680 मीटर (12,000+ फीट) की ऊँचाई पर विराजमान है और इसे विश्व के highest Shiva temple में गिना जाता है। यहाँ जहां अधिकांश शिव मंदिरों में शिवलिंग की पूजा होती है, वहीं तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजाओं (arms) की विधिवत पूजा की जाती है। ‘तुंग’ शब्द का संस्कृत में अर्थ ‘भुजाएं’ होता है, और यही इस मंदिर की पहचान है। इस अनोखे पूजा स्वरूप ने तुंगनाथ को Shiva devotees के लिए विशेष महत्व का तीर्थस्थल बना दिया है।
पौराणिक महत्व और Panch Kedar यात्रा
तुंगनाथ पंच केदार (Panch Kedar) तीर्थयात्रा का तीसरा मंदिर है। पंच केदार पांच ऐसे धाम हैं जहाँ भगवान शिव के विभिन्न अंगों का प्रकट होना माना जाता है:
- केदारनाथ (पीठ/कूबड़)
- रुद्रनाथ (मुख/सिर)
- मध्यमहेश्वर (नाभि/पेट)
- कल्पेश्वर (जटाएँ/बाल)
- तुंगनाथ (भुजाएँ/हाथ/कंधे)
महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों का प्रायश्चित करने हेतु भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। शिव ने बैल का रूप धारण कर भूमिगत हो जाने पर पांडवों ने उनका पीछा किया, और उनके अंग हिमालय के विभिन्न स्थलों पर प्रकट हुए। तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजाएँ प्रकट हुईं, इसलिए यहाँ विशेष रूप से arms worship की परंपरा चली आ रही है।
पांडवों द्वारा निर्माण
कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अर्जुन के नेतृत्व में तुंगनाथ मंदिर का प्रथम निर्माण करवाया। युद्ध के दौरान पांडवों द्वारा अपने संबंधियों और गुरुजनों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने हेतु उन्होंने भगवान शिव से क्षमा याचना की। ऋषि व्यास के मार्गदर्शन पर पंच केदार तीर्थयात्रा का आरम्भ हुआ, और तुंगनाथ मंदिर का स्थापन भी इसी पवित्र यात्रा के अंतर्गत हुआ।
भगवान राम और चंद्रशिला की कथा
रामायण के अनुसार, भगवान राम ने रावण वध के पश्चात् ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए तुंगनाथ के समीप चंद्रशिला में कठोर तपस्या की। यह चोटी मंदिर से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ रामचंद्र के ध्यान ने इस क्षेत्र को और भी दिव्य बना दिया। कुछ मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि स्वयं भगवान राम ने तुंगनाथ मंदिर के निर्माण में योगदान दिया।
अन्य पौराणिक किवदंतियाँ
देवी पार्वती ने शिव से विवाह की सिद्धि के लिए यहीं तपस्या की, जबकि कुछ श्रुतीयों के अनुसार रावण ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु इसी स्थल में तप किया। स्थानीय मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में तुंगनाथ का दर्शन किया और कत्यूरी राजाओं ने मंदिर के पुनर्निर्माण में भूमिका निभाई।
वास्तुशिल्प झलक
तुंगनाथ मंदिर नागर शैली (Nagar architecture) में निर्मित है और इसकी उम्र लगभग 1,000 वर्ष मानी जाती है। मुख्य मंदिर के अष्टधातु (eight metals) से बनी भगवान शिव की मूर्ति, नंदी बैल की पत्थर की श्रद्धांजलि, और हिमालय की चोटियों—नन्दा देवी, त्रिशूल, चौखंबा—के मनोरम दृश्य इसे एक आदर्श blend बनाते हैं।
अनूठी परंपराएँ
मंदिर के पुजारी मक्कामाथ गाँव के मैथानी ब्राह्मण परिवार से पीढ़ी दर पीढ़ी आते रहे हैं। यहाँ की सबसे अनोखी रस्म है बाबा तुंगनाथ की नृत्य करती डोली, जिसे devotees शिव के क्रोध की अभिव्यक्ति कहते हैं। यह अनुभव तीर्थयात्रियों को दिव्य स्पर्श का अहसास कराता है।
तीर्थयात्रियों के लिए Practical Guide
- यात्रा की शुरुआत चोपता से होती है, और तीर्थयात्रियों को लगभग 3–3.5 किलोमीटर trekking करना होता है, जिसमें 2–3 घंटे लगते हैं।
- ऊँचाई की बीमारी से बचने हेतु acclimatization आवश्यक है।
- यात्रा का season अप्रैल/मई से अक्टूबर/नवंबर तक रहता है; भारी snowing के कारण शीतकालीन महीनों में मंदिर बंद रहता है।
- शीत ऋतु में शिव प्रतिमा की पूजा मक्कामाथ ग्राम में की जाती है।
- निकटतम railway station ऋषिकेश है, जो लगभग 210 किलोमीटर दूर है।
तुंगनाथ Temple न केवल एक religious destination है, बल्कि Spiritual seekers के लिए भी अनमोल treasure है जहाँ mythology, history और devotion का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहाँ की ऊँचाई, अनोखी पूजा पद्धति और Panch Kedar यात्रा में इसकी महत्वपूर्ण स्थिति इसे भारत की rich spiritual heritage का अभिन्न हिस्सा बनाती है।